Monday, 10 April 2017

Bhorna


कहीं हम भूल न जाएं 

भोरना
हम सिंधी इसे ' भोरना ' कहते हैं। थोड़े कड़क पराठे को फोल्ड कर खास तरीके से क्रश किया जाता है, जिसके उसका स्वाद और बढ़ जाता है (हां! सचमुच कभी ट्राई कीजिए। बस पराठे बेलते वक्त थोड़ा घी भी डालिए) पर मैं रेसिपी बताने के लिए यह पोस्ट नहीं लिख रहा।
दरअसल आज बहुत दिनों बाद यह 'भोरना' शब्द याद आया। इन दिनों हम सिंधी जो कुछ टूटी-फूटी सिंधी भाषा अपने घरों में बचा पाए हैं, उसमें व्याकरण तो सिंधी की है, पर कई शब्द, विशेषण, उपमाएं, मुहावरे गायब हो गये हैं। 'भोरना' भी उनमें से एक क्रिया है। पर सिंधी भाषा से यह शब्द ही नहीं गया, सिंधी घरों में फुलकों का भोरना भी बंद हो गया है। मेरे बच्चे अपनी मां से अब फुलके को भोरने के लिए नहीं कहते, जैसे हम भाई-बहन अपनी मां से कहते थे। तो क्या हमारे रसोईघरों में भोरना बंद हुआ इसलिए यह शब्द भाषा ने त्याग दिया ? पर मामला उल्टा भी तो हो सकता है। अगर किसी काम के लिए हमारी दैनंदिन की भाषा में शब्द ना हो तो वह काम ही हम करना बंद कर दें। भोरना के लिए हिंदी में कोई शब्द नहीं है। अंग्रेजी का crush हथौड़े मारने जैसी किसी क्रिया का पता देता है, जबकि भोरने के लिए सिंधी महिलाएं फुलके को एक हाथ से सहारा देकर खड़ा करती हैं फिर इसे दूसरे हाथ की हथेली से थप्पी देती हैं। तो यदि किसी समाज की भाषा में भोरना शब्द ना हो तो वह इस क्रिया को कैसे कम्यूनिकेट करेगा, तब यह पाक विधि हमेशा से उसके खान-पान से खत्म हो जाएगी और एक खास किस्म के स्वाद से एक पूरा समाज हमेशा के लिए वंचित हो जाएगा।
भाषा के मर जाने से जो नुकसान होते हैं, यह उसकी एक सादा मिसाल है। थोड़ा गहराई में जाएं तो पता चलता है इंसान के जज़्बात और जीवन-मूल्यों पर भी भाषा गहरा असर डालती है। हमारी सिंधी में एक शब्द है- 'सिक्क' ! इसे ठीक से उच्चारित करने के लिए आपको इसके आगे एक अदृश्य 'अ' का भी उच्चारण करना होगा, वरना अंग्रेजी के सिक यानी कि बीमार का उच्चारण होगा। (सिंधी के शब्द स्वरांत होते हैं, शब्द के अंत में अधिकांशतः अ या उ की ध्वनि होती है, लिखते वक्त इस स्वर को लिखा नहीं जाता पर बोलते वक्त उच्चारित किया जाता है। यह अंग्रेजी के 'साइलेंट लेटर' से ठीक उल्टा मामला है) तो यह सिंधी का जो 'सिक्क' है, उसका अर्थ है- किसी प्रियजन पर बहुत प्यार आकर उससे मिलने की इच्छा पैदा होना। दूसरी भाषाओं मे प्यार, स्नेह, लव-मोहब्बत, याद आना, इनमें से कोई भी शब्द इस भावना को ठीक से अभिव्यक्त नहीं कर सकता। हम सिंधी किसी दोस्त रिश्तेदार से जब यूं ही मिलने जाते हैं तो जाकर कहते हैं- "मुखे तुंजी सिक्क पई लगे!" अब जब हमारी भाषा में यह सिक्क शब्द मर जाएगा, तो हो सकता है हमारे दिलों में एक खास किस्म के जज्बात पैदा होना भी बंद हो जाएं जिन्हें जतलाने के लिए हम इस शब्द का इस्तेमाल करते थे। हो सकता है तब हम दूसरों से बेवजह मिलने ही न जायें।
भाषाएं अकेले नहीं मरतीं उनके साथ सदियों, पीढ़ियों से इकट्टा किया पारंपरिक ज्ञान और जीने का फ़लसफ़ा भी मर जाता है। भाषा सिर्फ बातचीत के माध्यम भर नहीं है, वह पीढ़ियों को किसी लंबी चेन की कड़ियों की तरह बांधती है और जीने के तौर-तरीके एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाती है। यह बात सिंधियों जैसे किसी विस्थापित समाज के लिए और भी महत्वपूर्ण है। क्योंकि जब कोई समाज विस्थापित होता है तो भाषा किसी जिम्मेदार गृह-स्वामिनी की तरह उसके भाव-संसार के खजाने की चाबी संभालकर रखती है और एक के बाद दूसरी पीढ़ी को सौंपती है।
ग्लोबल विलेज बनती इस दुनिया में भाषाओं का मरना तय है। मेरे फुलके को 'भोरने' न भोरने से पता नहीं हमारी सिंधी के बचने का क्या संबंध है, पर मैं सोच रहा हूं अपने बच्चों को भोरना शब्द और क्रिया दोनों सिखा ही दूं, क्योंकि मैंने अपनी मां से इसे सीखा है और यह कर्ज मुझे अपने बच्चों पर उतारना ही चाहिए।

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